प्रदेश के 5 विश्वविद्याल पिछले 5 माह से कुलपति विहीन तो 2 और रिक्तता के करीब रायपुर कुलपति की नियुक्तियों में राजभवन द्वारा बरती जा रही उदासीनता से पूरा शिक्षा जगत अचंभित...!

केन्द्र सरकार ने इसी वर्ष से नई शिक्षा नीति लागू किया है,जो छत्तीसगढ़ के शैक्षणिक संस्थानों में भी लागू होता है।परंतु उच्च शिक्षा का बेहद बुरा हाल है।इस बीच एक बात की आज कल जोरों से चर्चा है वह यह कि प्रदेश के कई विश्वविद्याल जो शासन के अधीन संचालित होते हैं, विगत 5 माह से भी ज्यादा समय से कुलपति विहीन हैं,यहां तक कि 11 फरवरी को 6 माह पूरे हो जाएंगे।ऐसे में नियम यह है कि प्रभारी कुलपति का कार्यकाल बढ़ाया जाना आवश्यक होगा और ऐसा करना पड़ा तो यह छत्तीसगढ़ के इतिहास में राजभवन की सबसे बड़ी नाकामी होगी। बता दें कि इन विवि में या तो संभाग के आयुक्त को कार्यभार सौंप दिया गया है या फिर किसी अन्य विश्वविद्यालय के कुलपति को एक विश्वविद्यालय में तो एक सहायक प्राध्यापक को कुलपति की जिम्मेदारी दे दी गई है। प्रदेश में ऐसे 5 विश्वविद्यालय हैं जो वर्तमान में नये कुलपति की नियुक्ति का बाट जोह रहे हैं।वहीं इस फेहरिस्त में अब दो और विश्वविद्यालय का नाम जुड़ जाएगा जिनके वर्तमान कुलपति का कार्यकाल इसी माह तो दूसरे का 5 मार्च को रिक्त हो रहा है।

प्रदेश के 5 विश्वविद्याल पिछले 5 माह से कुलपति विहीन तो 2 और रिक्तता के करीब रायपुर  कुलपति की नियुक्तियों में राजभवन द्वारा बरती जा रही उदासीनता से पूरा शिक्षा जगत अचंभित...!

विश्वविद्यालय अधिनियम 1973 के तहत संचालित होने वाले प्रदेश के विश्वविद्यालयों में कुलपति नियुक्त करने का सम्पूर्ण अधिकार प्रदेश के राज्यपाल जो पदेन कुलाधिपति भी होते हैं के अधीन होता है और विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति करने राजभवन ही निहित प्रवधानों के तहत प्रक्रिया शुरू करती है।विश्वविद्यालय अधिनियम 1973 के तहत नए कुलपति की प्रक्रिया वर्तमान कुलपति के कार्यकाल समाप्ति के 3 माह पूर्व आरंभ हो जानी चाहिए।परंतु पहली बार ऐसा हुआ कि इस बार यह प्रक्रिया वर्तमान कुलपति के कार्यकाल समाप्ति के बाद शुरू हुआ,जिसे भी अब 6 माह होने को है और राजभवन कुलपतियों की नियुक्ति नहीं कर सकी है।राजभवन का इस तरह की उदासीनता शिक्षा जगत को अचंभित कर रहा है।गाहे बगाहे चर्चा यह भी होती रही है कि वर्तमान राज्यपाल अभी तक के हुए राज्यपालों में सबसे ज्यादा गंभीर व अनुशासन प्रिय हैं,परंतु इस महत्वपूर्ण मामले में जिस तरह की लेटलतीफी की जा रही है इससे उनकी छवि पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।

बता दें कि प्रदेश के शासकीय विश्वविद्यालयों को मिलने वाला नेक का ग्रेडिंग भी निराशाजनक रहा है और उच्च शिक्षा का स्तर समय के साथ गिर रहा है।इस वजह से निजी विश्वविद्यालय इसका लाभ ले रहे हैं और वहाँ विद्यार्थियों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है।जबकि शासकीय विश्वविद्यालयों में रुझान कम हो रहा है।आज भी प्रदेश के अधिकांश शासकीय विश्वविद्यालयों विश्वविद्यालय अध्ययन शाला का गठन नहीं हो सका है तो शिक्षकीय पदों की कमी के चलते विद्यार्थियों को अध्यापन का उचित लाभ नहीं मिल पा रहा है।विश्वविद्यालयों में नियमित कुलपति न होने से लाखों विद्यार्थियों के भविष्य पर भी इसका विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।प्रभारी कुलपति कोई भी नीतिगत निर्णय लेने से बच रहे हैं।इस वजह से विश्वविद्यालयों में कई काम विगत 6 माह से पेंडिंग हो गए हैं।