माँ: जीवन की सबसे बड़ी शक्ति – प्रत्युषा फाउंडेशन ने एकल माताओं को दिया समर्पित सम्मान

माँ: जीवन की सबसे बड़ी शक्ति – प्रत्युषा फाउंडेशन ने एकल माताओं को दिया समर्पित सम्मान

[20:55, 15/5/2025] preetimishra: रायपुर के वृंदावन हॉल, सिविल लाइन में अंतरराष्ट्रीय मातृ दिवस के अवसर पर आयोजित “एकल माँ प्रसूति सम्मान समारोह” में समाज की उन माताओं को मान्यता दी गई, जिन्होंने जीवन के संघर्षों को न केवल सहा बल्कि उसे प्रेरणा में बदला। प्रत्युषा फाउंडेशन की इस पहल ने एकल मातृत्व की असली ताकत को उजागर किया, जो अक्सर अनदेखा रह जाती है।

संघर्ष की कहानियाँ, साहस की मिसालें

कार्यक्रम की अध्यक्ष प्रीति दास मिश्रा ने बताया,
“हमने उन माताओं को सम्मानित किया, जिन्होंने अपने पति के निधन के बाद अकेले बच्चों, परिवार, ससुराल और मायके की जिम्मेदारी निभाई और जीवन की चुनौतियों को पार करते हुए अपने बच्चों को शिक्षित और संस्कारित किया। उनका यह समर्पण हर समाज क…
: माँ: जीवन की सबसे बड़ी शक्ति – प्रत्युषा फाउंडेशन ने एकल माताओं को दिया समर्पित सम्मान
ज्योति पब्लिक न्यूज़, रायपुर विशेष रिपोर्ट

रायपुर के वृंदावन हॉल, सिविल लाइन में अंतरराष्ट्रीय मातृ दिवस के अवसर पर आयोजित “एकल माँ प्रसूति सम्मान समारोह” में समाज की उन माताओं को मान्यता दी गई, जिन्होंने जीवन के संघर्षों को न केवल सहा बल्कि उसे प्रेरणा में बदला। प्रत्युषा फाउंडेशन की इस पहल ने एकल मातृत्व की असली ताकत को उजागर किया, जो अक्सर अनदेखा रह जाती है।

संघर्ष की कहानियाँ, साहस की मिसालें

कार्यक्रम की अध्यक्ष प्रीति दास मिश्रा ने बताया,
“हमने उन माताओं को सम्मानित किया, जिन्होंने अपने पति के निधन के बाद अकेले बच्चों, परिवार, ससुराल और मायके की जिम्मेदारी निभाई और जीवन की चुनौतियों को पार करते हुए अपने बच्चों को शिक्षित और संस्कारित किया। उनका यह समर्पण हर समाज के लिए प्रेरणा है।”

इस कार्यक्रम में मंच पर 21 वर्षीय पुष्पा जी का उदाहरण विशेष रूप से उभरा, जो रेलवे में नौकरी के साथ अपने बच्चों को शिक्षित कर आज उनके बच्चे सरकारी नौकरी में हैं। मोती दुबे, जिन्होंने गर्भावस्था में पति को खोया, ने टिफिन का काम करते हुए अपने बच्चे को इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ाया।

72 वर्षीय श्रीमती सुमित्रा देवी ने बताया कि कैसे उन्होंने अकेले परिवार संभाला और आज उनकी चार पीढ़ियाँ उनके आशीर्वाद से फल-फूल रही हैं। 84 वर्षीय माँ रंजन बेन शाह, जिनके पुत्र छत्रपति शिवाजी इंग्लिश मीडियम स्कूल के संचालक हैं, ने अपने संघर्ष की कहानी सुनाई, जो सबके लिए प्रेरणा बन गई। अन्नपूर्णा देवी शर्मा ने बताया पति पीड़ित थे उनके मृत्यु के पश्चात वो भी पंडित बनी छत्तीसगढ़ के एक मात्र महिला पंडित है उसने अपने बच्चे को भी पंडित बनाया 

समाज की व्यापक भागीदारी

कार्यक्रम में अनेक माताओं के साथ-साथ समाज के विभिन्न वर्गों से लोग शामिल हुए। कार्यक्रम में मंच साझा करने वाली सभी माताओं के नाम इस प्रकार हैं:
अर्चना तिवारी, मधु अरोड़ा, अन्नपूर्णा शर्मा, गौरी अवधिया, नीला बघेल, सुमन पांडे, पिंकी स्वामी, सुनीता शर्मा, किरण साहू, लता तिवारी, डी सुगमा, गोमती देवी प्रजापति, तिलोत्तमा प्रधान, कनकलता मिश्रा (बेमेतरा), आभा बघेल, मंजुलता साहू, साधना दास, शैफाली मंडल (माना), मनीषा सिंह बघेल, आरती उपाध्याय, सुषमा तिवारी, मधु जैन, कल्याणी भोई, विद्या भट्ट।

सम्मान समारोह के विशिष्ट अतिथि

मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे:

संजय श्रीवास्तव, प्रदेश महामंत्री, भारतीय जनता पार्टी एवं अध्यक्ष नागरिक आपूर्ति निगम छत्तीसगढ़ शासन

अमरजीत सिंह छाबड़ा, अध्यक्ष, अल्पसंख्यक आयोग छत्तीसगढ़ शासन

राजेश गुप्ता, पार्षद शंकर नगर वार्ड जिला संयोजक झुग्गी झोपड़ी 

सुमन पांडे, पार्षद ठाकुर प्यारे लाल वार्ड
कार्यक्रम संरक्षण की जिम्मेदारी आभा मिश्रा ने संभाली, संयोजन शशिकांत शर्मा ने किया, मंच संचालन दिव्यांशी  ने किया।


संस्था का समर्पित नेतृत्व

प्रत्यु्षा फाउंडेशन की अध्यक्ष प्रीति दास मिश्रा, सचिव प्रवीण शुक्ला, कोषाध्यक्ष प्रेम प्रकाश साहू, मीडिया प्रभारी शादी यादव ऋतु प्रजापति, सदस्य आयुष मिश्रा, वाय के जया, त्रिभुवन दास मिश्रा, अंजलि देशपांडे, पुष्पा साहू अदिति दास गुप्ता ,फ्लोरा महानंद सहित अन्य सदस्य पूरे कार्यक्रम में सक्रिय रहे।

आगे की राह: सहायता और सशक्तिकरण

फाउंडेशन ने घोषणा की कि आने वाले दिनों में वे एकल माताओं के लिए स्थायी सहायता समूह बनाएंगे, जहाँ आर्थिक सहायता, कानूनी सलाह, मानसिक स्वास्थ्य परामर्श और कौशल विकास प्रदान किया जाएगा। यह पहल न केवल सम्मान का प्रतीक है, बल्कि समाज में एकल माताओं के प्रति जागरूकता और समर्थन का संकल्प भी।


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निष्कर्ष:

माँ वह शक्ति है जो जीवन को दिशा देती है, जो अकेले खड़ी होकर परिवार और समाज दोनों को संभालती है। प्रत्युषा फाउंडेशन का यह आयोजन एक ऐसा संदेश है जो समाज को बताता है कि एकल मातृत्व संघर्ष नहीं, बल्कि अटूट संकल्प और नेतृत्व की मिसाल है।