साभार सद्विप्र समाज सेवा एवं सदगुरु कबीर सेना के संस्थापक सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज की अनमोल कृति रहस्यमय लोक से
प्रदीप नायक प्रदेश अध्यक्ष सदगुरु कबीर सेना छत्तीसगढ़
भगवान कृष्ण जो पूरे भूमंडल को अपने इशारे पर नचाते रहे। महाभारत युद्ध में उन्हें एक बाण नहीं लगा। कभी घायल नहीं हुए। उनका प्रिय शिष्य अर्जुन गांडीव लिए रहा। गोपियों को कोल-भील लिए। भगवान कृष्ण को एक अदना सा बहेलिया धोखे से मार दिया। वे बहेलिया को सांत्वना देकर स्वयं वहां से चलकर प्रभास क्षेत्र में आकर अपना शरीर छोड़ दिए। उनके पार्थिव शरीर को एक लकड़ी के मंजूश में बंद कर समुद्र में डाल दिया गया।
यह सब मैं अपनी पथराई आंखों से देखने को विवश था। इतने बड़े सम्राट,अवतार, परमात्मा के शरीर को समाधि देने वाला कोई नहीं मिला। परिवार के सारे सदस्य देखते ही देखते प्रभास क्षेत्र में विलीन हो गए। क्या नियति का यही खेल है या परमात्मा की लीला है? ऐसी लीला किस लिए? किसके लिए? बस मेरे लिए। पृथ्वी पर आए हुए जीवो के लिए। जो इस लीला को समझ लिया। वह स्वयं को समझ लिया। जब यहां से जाना ही है तब कैसे जाएंगे? यह व्यक्ति पर निर्भर है। आप चाहे तो रावण की तरह जाएं, चाहे तो राम की तरह जाएं। आप कंस की तरह जिएं या कृष्ण की तरह। इसकी पूरी स्वतंत्रता है---व्यक्ति को।
ऊंच-नीच, बड़ा- छोटा का क्षुद्र भावना ही हीनता का परिचायक है। मैं स्वयं अवतार था। अपने सामने भगवान राम, भगवान कृष्ण, बुद्ध, महावीर का भी अवतरण देखा। जीवन का रहस्य खुल कर आ गया। वही आपको बताने आया हूं----मैत्री, करुणा, उपकार, त्याग एवं उत्सर्ग ही इस मानव शरीर का अनमोल धरोहर है। जो गुरु शरण में रहकर, अपना अहं छोड़कर इन पांच रत्नों को अपना लेता है। वही पृथ्वी का अनमोल हीरा है।
विश्वमित्र को कबीर के रूप में आते भी मैं देखा। हम लोग आपस में चर्चा करने लगे, यह क्या कर रहे हैं? विपरीत परिस्थिति, निर्धनता, मुसलमान वेश में कहां एवं क्यों जा रहे हैं? मैं एवं देवोदास, मां उमा, भगवान शंकर सभी साथ गए थे। परंतु वे धुन एवं इच्छाशक्ति के पक्के बोले--भगवान शंकर आपके नगरी में आपके सामने ही काशी करवट के माध्यम से हत्याएं हो रही है। आपके नाम पर स्वर्ग जाने का प्रमाण पत्र धन के आधार पर दिया जा रहा है। इस्लाम के नाम पर अत्याचार हो रहा है। मैं क्या करूं? पुरोहित एवं मौलाना दोनों पर हमला एक साथ बोलना है। हम लोग मौन देखते रहे।
यह भी देखा कि पुरोहित एवं मौलाना जो दोनों दो ध्रुव पर रहते हैं। कबीर को हटाने के लिए दोनों मिल गए। वर्तमान इस्लाम राजा मु. लोधी से शिकायत किए। परंतु यह क्या? उसे भी शिष्यत्व ग्रहण करना पड़ा। एक तरफ हिंदू राजा तो दूसरी तरफ मुसलमान राजा दोनों ने इनका शिष्यत्व ग्रहण किया। काशी करवट ऐसे नायक व्यवस्था पर जोर से बरसे।
पुरोहित एवं मुल्ला का प्रचार भी जोर पकड़ा। पुरोहितों ने कहा कबीर से सावधान रहना---वह ऊपर-ऊपर राम-राम कहता है। अंदर-अंदर अल्लाह-अल्लाह कहता है। मौलाना लोगों ने कहा सावधान रहो----वह नापाक है। मुसलमान के घर रहता है---बुत की पूजा करता है। वह लोगों को भरमा कर दोजक में डालेगा। बहुत जबरदस्त उपद्रव खड़ा हुआ। परंतु कबीर अपने उद्देश्य से पीछे नहीं हटे। मगहर में जाकर अपना शरीर छोड़ें।
स्वामी जी मैं देख रहा हूं----आप वही है। उन्हीं की आत्मा का अवतरण हुआ है। आपने सद्विप्र समाज की अवधारणा दी है। यह अति उत्तम है। चूंकि पूर्व काल में अन्य वर्ण के लोग जो राजसत्ता पर बैठते थे; क्षत्रिय धर्म नहीं स्वीकार करते थे। उन्हें राक्षस घोषित कर देते थे। पुरोहित वर्ग उन्हीं लोगों को राक्षस कहता था। परंतु आपने ब्राह्मण जैसा त्याग, तप, विद्वता, क्षत्रिय जैसा तेज, क्षात्र, पौरूष, परहित में स्वयं को उत्सर्ग करने की कौशल, वैश्य---जैसे धन एकत्र एवं वितरण करने की कामना, शुद्र जैसा सेवा, समर्पण का गुण हो वही सद्विप्र होगा। यह अनूठी बात है। यदि पृथ्वी पर इसे स्थापित कर दिया जाए तो इसकी कुरूपता मिट जाएगी। आपकी सोच उत्तम है।
यह भी याद रखना होगा---कबीर के अनुयाई आपको स्वीकार नहीं करेंगे साथ ही सनातनी भी बर्दाश्त नहीं करेंगे। जो भी लीक से हटकर चलता है, उन्हें विभिन्न प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। आप विपरीत परिस्थितियों में कार्य करना अच्छी तरह जानते हैं। हम लोगों की मंगल कामनाएं आपके साथ है। आप तो कार्य का परिणाम मिले बिना ही कार्य करने के आदी है। अतएव एक न एक दिन सिद्धि को, फलाफल को स्वयं दरवाजे पर दस्तक देना ही पड़ेगा।
आपको एक साथ दो आत्माओं की भूमिका निभानी होगी। सद्गुरु विश्वमित्र एवं परम शिष्य राम की। अतएव आपका अवतरण पृथ्वी के लिए अनमोल हीरे की तरह से भगवान शिव पृथ्वी को तंत्र दिए थे। भगवान राम ने सामाजिक व्यवस्था दी थी। भगवान कृष्ण ने धर्म का राज्य स्थापित किया था। आपका कार्य शिव की तरह वर्तमान युग के अनुसार तंत्र देना है। राम की तरह सामाजिक व्यवस्था देना है। कृष्ण की तरह धर्म पर आधारित सामाजिक व्यवस्था करना है, सद्गुरु विश्वमित्र की तरह दिव्यास्त्र-देवास्त्र भी देना है। अतएव आपका उत्तरदायित्व अत्यंत कठोर एवं श्रेष्ठ है।
क्रमशः----