किसका गुमान रे साथी

Premdeep

किसका गुमान रे साथी

तेरी भी हस्ती  होगी खाक 
 मेरी भी हस्ती होगी खाक 
फिर किसका गुमान रे साथी 
जाने पहले होगा कौन खाक ।।
ऊंचे महल अटारी तेरी 
नीचे हम सब उसके दास 
कीमत मुझे पता है मेरी 
कहीं तू दास कहीं मैं दास ।।
मस्ती है उनकी बस्ती है उनकी 
उनसे है बस मुझको आस 
अपेक्षा उपेक्षा किसी से नहीं 
तुला रखती नहीं अपने पास ।।
मन का मालिक धन का नहीं 
जरूरी क्या है इनसे काम 
सफर कर देगा मुश्किल ये 
जाने रब का कहां है मुकाम ।।