साभार सद्विप्र समाज सेवा एवं सदगुरु कबीर सेना के संस्थापक सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज की अनमोल कृति रहस्यमय लोक से

प्रदीप नायक प्रदेश अध्यक्ष सदगुरु कबीर सेना छत्तीसगढ़

साभार सद्विप्र समाज सेवा एवं सदगुरु कबीर सेना के संस्थापक सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज की अनमोल कृति रहस्यमय लोक से

राजर्षि देवदास मधुर मुस्कान छोड़ते हुए सभी को जय श्री समाधि रूपी सागर से बाहर निकालते हुए दृश्य बदल दिए। मेरी तरफ इशारा करते हुए बोले---स्वामी कृष्णानंद जी!सद्गुरु भगवान रामानंद जी भी आपको आशीर्वाद देने हेतु अवतीर्ण"हो गए हैं। आप उनका स्वागत करें।

हर समय बाहर देखा--देखता ही रह गया। यह क्या है? विद्युत-कांति श्वेतांबर, वस्त्रादि शोभित, नाना माला दी आभूषणों से युक्त नवोदित सूर्य तुल्य गौरकाय विशाल वपू का रूप धारण कर प्रसन्ना बदन मुस्कुराते हुए अपलक मेरी तरफ देखते हुए बढ़ रहे थे। मैं वायु वेग से उठकर चला एवं सामने प्रकाश पुंज के चरणों में दंडवत गिर गया। दोनों हाथों से उनका चरण पकड़ लिया। पता नहीं कितनी देर तक इस स्थिति में रहा। जब मेरी आंखें खुली तब अपने को उनके अंक में पाया। वे अपने विशाल भुजाओं में आब्द्ध कर अंक में भर लिए थे। मैं एक अबोध शिशु की तरह अपने माता के अंक में छिप जाना चाहता था। ऐसा ज्ञात हुआ यह मेरे माता-पिता दोनों के एक ही रूप है।

उनकी समस्त ऊर्जा निकल कर मुझ में प्रवाहित हो रही थी। ऊर्जा का एक वर्तुल बन गया था। दोनों मिलकर एक हो गए थे। मेरा अस्तित्व उस विराट में विलीन हो चला था। ऐसा ज्ञात हुआ इन लोग कल्पों तक एक दूसरे से आबद्ध थे। परंतु यह घटना कुछ ही क्षणों में पूर्ण हुई। मेरी तंद्रा तब टूटी जब पीछे से आवाज आई थी--स्वामी जी! आप तो जगतगुरु हैं। भगवान राम के अंशावतार हैं। आपने भी इस काशी नगरी को पावन किया है। यहां से सुंदरता को भगाया है। सभी में राम रस भरा है। आप से द्वादश भागवत अवतीर्ण हुए हैं। आप अपने तप से इस माया के शरीर को भी परम चैतन्य कर दिया है। आपके ब्रह्ममय शरीर से जगत आलोकित हो रहा है। आप भी अपनी सुधि को दिए हैं। अपने को पूर्णरूपेण स्वामी कृष्णायन में उतार दिए। आपका रोआं-रोआं उनसे मिल गया। जिससे अजस्त्र त्याग, तप, रिद्धि सिद्धि के साज सामान निराकार पार ब्रह्म परमात्मा में पूर्णतः बिना प्रयास के इन में प्रवाहित कर इन्हें अपना स्वरूप बना लिया। हम सभी आपके इस उदारता पर अति प्रसन्न है।आप मुझ पर कृपा करें अपना स्थान ग्रहण करने का कष्ट करें, तो मैं आपका कृतज्ञ होऊंगा।

यह संदेश में स्पष्ट सुना, परंतु असहज हो रहा था। मैं इसी अवस्था में रहना चाहता था। गुरुदेव भी अपने अंक से छोड़ने को राजी नहीं थे। अंक में एक दूसरे से आबद्ध थे। धीरे-धीरे स्वामी जी आगे बढ़ रहे थे। मैं भी पीछे हट रहा था। सहसा वे बोले, तुम्हारा हमारा प्रेम सनातन है। शाश्वत है। सत्य है। हम दोनों मिलकर एक हो गए हैं। मैं तुम पर अति प्रसन्न हूं। मेरे मुंह से अनायास ही निकल पड़ा---हे ऋषिवर जगतगुरु मेरे आदि गुरु आपके श्री चरणों के दर्शन से मेरा जीवन धन्य हुआ। आपने चिल्का लेक परोपकार के लिए आत्मोत्सर्ग किया है।हे गुरुवर! आपने जीव कल्याण के लिए जिन लोकोत्तर कार्यों का साधन किया है, वे संसार में चिरकाल तक अमर रहेंगे। आपने वेदों पुराणों के विचारों को समयानुसार अपने उपदेश के माध्यम से साधारण जनता को प्रदान किया है। आप त्रिकालज्ञ  हैं। आपके लिए संसार में अज्ञात कुछ भी नहीं है।आपने अपने क्षीर समुद्र सदृश्य शरीर द्वादश भगवान रूप चंद्रमा को प्रकाशित कर संसार का अशेष कल्याण साधन किया है। आप की महिमा अपरम्पार है। आपके क्रियाकलाप अद्भुत है। आप का गुणगान करने में मैं समर्थ हूं। आपके दर्शन मात्र से जीवन मुक्त हो जाता है। आपने मुझ पर अत्यंत कृपा करके अपने अंक में भरकर अपने स्वरूप को प्रदान किया है। आप करुणा के सागर है। आपके श्री चरणों में मेरा अनंत प्रणाम है। ऐसा कहते हुए मैं उनके चरणों में गिर गया। भगवान श्री रामचंद्र जी अति प्रसन्न रहो मुझे उठा कर पुनः अपने अंक में भर लिए। मेरे सिर पर अपना हाथ फेरते हुए बोले---स्वामी कृष्णायन! मैं तुम से अति प्रसन्न हूं। तुम्हारे संबोधन को मैं अंतरिक्ष से सुन रहा था। तुम्हारी मेधा शक्ति वाकपटुता, बौद्धिक क्षमता, ब्रह्मात्व के विस्तार की गति को देखकर मैं अपने को रोक नहीं सका। बरबस मुझे प्रगट होना पड़ा। तुम्हारे अतिरिक्त आज तक किसी को अंक में नहीं लिया। तुम मेरे ही सदृश्य हो। तुमने धर्म नीति की। राजनीति की, अर्थनीति की, नवीनतम व्याख्या की है। जिसकी प्रशंसा अंतरिक्ष में बैठे प्रत्येक आत्मा शरीर, ब्रह्म शरीर, देवगण करते हैं।मुझे ज्ञात हुआ स्वयं नारायण कि इस तरह की व्याख्या करके दिव्यास्त्र देवास्त्र  प्रदान कर सकते हैं।

हे नारायण! मैं आपके द्वारा लिखित ग्रंथों को देखा हूं। यत्र तत्र आप व्यक्ति विशेष, सूत्र विशेष, नीति विशेष पर कटाक्ष भी किया है। इससे मैं विशेष रूप से प्रसन्न हूं। आप सर्वार्थ दर्शी महानुभाव पुरुष है। इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। सूर्य देव जिस प्रकार आकाश में प्रतिभात होकर अंधकार का नाश करते हैं। तुम भी उसी तरह सदविप्र रूपी ब्रह्मत्म ज्ञान -महिमा का प्रचार करके मनुष्य का अज्ञानांधकार दूर कर पूर्व प्रतिभा का परिचय देंगे। आपने अपने प्रवचनों में, पुस्तकों में वेद के, ऋषियों के अस्फुट मनोभाव को जिस प्रकार प्रस्फुटित किया है। वह केवल आपके द्वारा ही संभव है

मुझे ज्ञात है कि परम पुरुष से ही आपका शरीर और शक्ति अद्भुत है। आप संपूर्ण विश्व को दिशा निर्देश देकर एक सूत्र में बांधने में समर्थ है। आपका कार्य अभी शेष है।

क्रमशः.....