रमन सिंह की नसीहत कितने को याद रहेगी

बड़े-बू़ढ़ों व अनुभवी बुजुर्गों का काम रहता है कि जब मौका मिले अपने अनुभव के आधार पर सचेत करना कि सफल होना है,सम्मान पाना है तो जो काम करने को मिले,सचेत होकर करना,दूसरे किसी काम के बारे मेें सोचना तक नहीं।वह कोई नसीहत यूं ही नहीं देते हैं, वह ऐसा करके सफल हुए हैं या लोगों को सफल होते हुए देखा है, इसलिए वह कहते हैं युवाओं से सफल होना है तो क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए।वह जानते हैं कि कम ही लोग ही होते हैं जाे किसी के बताने पर याद रखते हैं कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। इसके बाद भी वह युवाओं से कहते हैं क्योंकि वह चाहते हैं कि कोई युवा तो उनकी तरफ सफल हो, उनकी तरह देश व राज्य में सम्मान पाए।
राज्य के तीन बार के सीएम और वर्तमान में विधानसभा अध्यक्ष रमन सिंह ऐसे ही राज्य के अनुभवी राजनीतिज्ञ हैं वह कुछ कहते हैं तो अपने अनुभव के आधार पर कहते हैं और चाहते हैं कि युवा उनकी तरह सफल हों, उनकी तरह राज्य में उनका भी सम्मानजनक स्थान हो।हाल ही में उन्होंने एक कार्यक्रम में नए चुने गए भाजपा पार्षदों को नसीहत दी है कि पार्षद बनना ठेकेदार नहीं।वह भी पहली बार पार्षद बने तो उनके सामने भी दो विकल्प थे, पार्षद बने रहना या ठेकेदार बनना।उन्होंने तय किया पार्षद बने रहना है और पार्षद बने रहने के कारण व विधायक बनं, सांसद बने, छत्तीसगढ़ के तीन बार सीएम रहे और आज विधानसभा अध्यक्ष हैं। वह पार्षद की ठेकेदार बनना चाहते तो आज वह क्लास वन ठेकेदार होते, लेकिन जो सम्मान आज मिल रहा है,वह नहीं मिलता।
रमन सिंह का साफ कहना है कि राजनीति में पैसा बनाने आए हो या राज्य और जनता के लिए काम करने आए हो। पैसा बनाए आए हो तो पार्षद रहते ठेकेदार बन जाओगे। इससे पैसा को कमा लोगे लेकिन राज्य व जनता के लिए काम करने का जज्बा खत्म हो जाएगा, उसके बाद दोबारा चुनाव लड़ोगे तो जनता समझ जाएगी की यह आदमी पार्षद बनने नहीं ठेकेदारी करने आया है तो वह तुमको दोबारा पार्षद नहीं चुनेगी। नगर निगम में ७० पार्षद हर पांच साल में चुने जाते हैं, ज्यादातर लोग पार्षद चुनाव जीतने के बाद ठेकेदार बन जाते हैं।पार्षद बहुत कम लोग बने रहते हैं, जो पार्षद बने रहते हैं, वही विधायक, सासंद बनते है,मंत्री बनते हैं, सीएम बनते हैं। पीएम बनते हैं।
ठेकेदार बनने का विकल्प तो हर पद के साथ रहता है। जब कोई विधायक बनता है,उसके सामने भी पैसा कमाने का मौका आता है।जैसे ही वह पैसा कमाने की सोचता है, सांसद बनने का उसका रास्ता बंद हो जाता है और वह फिर विधायक भी नहीं बन पाता है। पैसा कमाने का मौका तो सांसद बनने पर, मंत्री बनने पर, सीएम बनने पर बढ़ता जाता है। पार्षद में कम पैसा कमाने का मौका रहता है तो सीएम बनने पर ज्यादा पैसा कमाने का मौका रहता है, यानी ठेकेदार बनने का मौका हर पद में रहता है, जो ठेकेदार नहीं बनता है, वह आगे बढ़ता है, उसके लिए सफलता के नए रास्ते खुलते हैं। रमन सिंह ने पार्षद रहते ठेकेदार नहीं बनने का फैसला किया इसलिए सीएम रहते भी वह ठेकेदार नहीं बने, विकल्प तो उनके पास हमेशा था लेकिन उन्होंने चुना कि ठेकेदार नहीं बनना है।
जो ठेकेदार नहीं बनता है वह सीएम बनता है।जो ठेकेदार बन जाता है, वह पार्षद,विधायक,सांसद,मंत्री बनकर खत्म हो जाता है। उन्हें कोई याद नहीं करता है। याद तो उनको किया जाता है जो पार्षद से सीएम बनता है। जो सरपंच से सीएम बनता है। रमन सिंह के अलावा राज्य के सीएम विष्णुदेव साय भी ऐसे ही नेता हैं। उनको भी ठेकेदार बनने का मौका सरपंच, विधायक,सांसद, केंद्र में मंत्री बनने पर मिला लेकिन वह ठेकेदार नहीं बने इसलिए राज्य के सीएम बनने योग्य माने गए और चुने गए। राजनीति में आकर पैसा तो बहुत लोग कमाते हैं, लेकिन उनको सम्मान नहीं मिलता है क्योंकि जनता तो अपने प्रतिनिधि के आचरण से जान जाती है कि कौन पैसा कमाऩे आया है, कौन काम करने आया है।
जनता उसके लिए काम करने वाले को हमेशा मौका देती है,उसका सम्मान करती है। राज्य में रमन सिंह का सम्मान राज्य की जनता ने खूब किया क्योंकि वह राजनीति में जनता व राज्य के लिए काम करने आए थे, इसलिए उनको तीन बार जनता ने काम करने का मौका दिया। वहीं भूपेश बघेल को एक बार ही मौका दिया और दूसरी बार मौका देने से मना कर दिया क्योंकि जनता समझ गई थी भूपेश बघेल को दूसरा मौका भी दिया तो वही करेंगे जो पांच साल करते रहे हैं। जनता पांच साल में ही समझ जाती है कि किसे दोबारा मौका देना है किसे दोबारा मौका नहीं देना है।