ग़ज़ल
मोना चन्द्राकर मोनालिसा रायपुर छत्तीसगढ़
सारी चीजों के होते हुए भी अतृप्त मन क्यूँ है
पिंजरे में पंछी उड़ने को आतुर जीवन क्यूँ है
सारे हसीन सपने देखकर तोड़ देते हैं हम यूँ
सपनों के लिए बुझे से अब हमारे नयन क्यूँ है
वाजिब मंजिल मिल ही नहीं रही है अब हमें
मुक्कमल की तलाश में ये दिल मगन क्यूँ है
हमसफ़र साथ है मेरे जीवन के हर सफर में
राह में चलते हुए दूर-दूर तक निर्जन क्यूँ है
मैं उड़ रही हूँ खुले आसमान में परवाज़ लिये
तब भी सूना-सूना 'मोना' ये नील गगन क्यूँ है