नारीवाद केवल नारा मात्र है
मोना चन्द्राकर मोनालिसा रायपुर छत्तीसगढ़
क्या स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद भी नारी सही मायनों में स्वतंत्र हुई है । क्या अभी भी कई क्षेत्रों में, कार्यालयों में और घरों में नारी स्वतंत्र रूप से कार्य करती है या उसके पांव में बेड़ियां हैं नारीवाद की ।
वो एक नारी है उसे उसकी सीमा के अंदर रहकर ही कार्य करना चाहिए ।
जो वो उसका कार्यस्थल हो, स्कूल हो, घर हो या कहीं बाहर । उसके लिए हर प्रकार की बेड़ियां रहतीं हैं । अगर कहीं बाहर कार्य करती है तो देर रात तक घर वापस आएगी तो अंधेरे और आवारा पुरुषों का डर लगा रहता है कि कहीं कुछ ग़लत ना हो जाए । समाज में अभी भी नारी के लिए बहुत बेड़ियां हैं जिसे तोड़ना बहुत जरूरी है ।
काम से देर रात घर वापस नहीं आ सकती मैं
सामाजिक दायरा और अस्तित्व हनन की बेड़ियां हैं
कार्यालय में पुरुष से ऊंची आवाज में बात नहींं करने की बेड़ियां
नारी को अपनी आवाज बुलंद नहीं करने की बेड़ियां हैं
कभी कुछ ग़लत होने पर न्याय की गुहार लगाने पर भी बेड़ियां
ये समाज केवल नारी को ही दोषी मानता है
मेरे पांव में बेड़ियां हैं मेरी माँ से लिए हुए संस्कार की
जो मुझे रोकती है घर उजाड़ने से पहले
मेरे दिल में ममता है मेरी नानी से मिली हुई
जो मुझे सबके लिए पहले सोचना सिखाती है
मेरे दिमाग में शिक्षा है जो मेरे पिता जी दिलाई है
जिससे मैं किसी का बुरा नहीं सोच सकती
हां मैं मानती हूं कि ये बेड़ियां कई बार बहुत पीड़ा देती है मुझे
लेकिन अपना भला सोचकर दूसरे का बुरा नहीं सोचा कभी
फिर भी अनवरत् प्रयास कर रही हूं कि
शायद एक दिन इन सब बेड़ियों से आजाद हो जाऊं
और अपने लिए केवल अपने लिए ही
इस समाज में सम्मान के साथ जी सकूं