समय का पहिया
अनिल उपाध्याय गोरखपुर उत्तरप्रदेश
यादों की बदली छायेगी आंखों में नमी आ जायेगी
गीतों के सुर जब पिघलेंगे रागिनी मौन हो जायेगी।।
मन विह्वल हो भटके इत उत क़दमों के निशां ढूंढेगा ही
दूर क्षितिज से फ़िर कोई अहसास की मुरली गायेगी।।
अल्फ़ाज़ नहीं ठहरेंगे कहीं लेखनी समय की पूछेगी
दूर कहीं कोई पायल झनकार की कजरी सुनायेगी ।।
यक़ीन करो अनुभूतियों का उड़ने दो नीले अम्बर में
जीवन के हज़ारों रंगों से चुन कर चुनरी लहरायेगी।।
समय के गहरे सागर में अपरिमित मोती बसते हैं
अन्तर्मन के चिर मंथन से कोई लहर कभी मुस्कायेगी।।
जीवन की अंधेरी सुरंगों में विचार ही मन की ज्योति पुंज
इक नन्हीं किरन ही काफ़ी है जो समय की राह दिखायेगी।।