ग़ज़ल
मोना चन्द्राकर मोनालिसा रायपुर छत्तीसगढ़
तुम नहीं आते मिलने तो ये वक्त गुजरता नहीं
रह रहकर याद गुजरती है ख्याल ठहरता नहीं
बीते लम्हें अक्सर रूला जातें हैं आंखों को मेरी
लेकिन मेरे दिल से तेरा अक्स बिखरता नहीं
ख्याल तेरा आते ही रोम-रोम खिल उठता है
तसव्वुर में तेरा साया जेहन से बिसरता नहीं
दिन में घड़ी दो घड़ी भूल भी जाऊं कभी तुम्हें
रात को तेरे यादों के बिना दिल संभलता नहीं
तुम समा गए हो मेरी रुह में इस कदर जालिम
तलाशती हूं खुद को 'मोना' वजूद झलकता नहीं