गणतंत्र
गण कही खो गया है,
तंत्र सचमुच सो गया है।
लूट डकैती मारा-मारी,
भष्ट्राचार बलात् कारी
गणजन लिप्त हो गया है।
गण कही------------
अर्थ समाज सांस्कृतिकता
राजनीतिक कोहरे से बहुत
घना रिश्ता हो गया है
गण कही खो गया
तंत्र सचमुच सो गया ।
अमीर और अमीर
गरीब और गरीबी भोग रहा सहिष्णुता भाव प्रवाह से बद्ध
असहिष्णुता का आज
बोलबाला हो गया है ।
गण कही खो गया
तंत्र सचमुच सो गया ।
रोजगार की तलाश में,
योग्य तरुण युवा मन,
कुंठा ग्रस्त हो खो गया है ।
गण कही खो गया है
तंत्र सचमुच सो गया है।
भारतीयता की आत्मचेतना,
घात प्रतिघात सहते जूझते,
आत्मविहिन काया हो गया है ।
गण कही खो गया है
तंत्र सचमुच सो गया है ।
भारत का गण
गणतंत्र होते हुए भी,
क्यो इतना विवश हो गया है ।
गण कही खो गया है ।
तंत्र सचमुच सो गया है ।
डाॅ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर
छत्तीसगढ़