हंसते चेहरे के पीछे का दर्द
मोना चन्द्राकर मोनालिसा रायपुर छत्तीसगढ़
स्त्री के मन की पीड़ा कौन जान पाया है आज तक
स्त्री अपना दर्द और दुःख छिपाती आई है अब तक
तुम पूछोगे तो कि कैसी हो तुम, ठीक तो हो ना...
तो वो थोड़ा सा हंसकर कह देती है कि मैं ठीक हूं...
पर वो बिल्कुल भी ठीक नहीं होती है...
उसके मन में अथाह पीड़ा है जो भीतर में ही हिलोरें लेता है...
वो उसे बाहर तनिक भी प्रदर्शित नहीं करती है...
उसे अभिनय करना आता है वो दर्शाती है कि वो ठीक है...
वो अपनी मन की बातें और पीड़ा उसी से बांटती है जो उसके चेहरे के साथ साथ मन को भी पढ़ सके स्त्री होना अपने आप में ही एक परीक्षा है
जिसकी पूरी हुई नहीं एक भी इच्छा है