भूपेश बघेल सरकार के ईमानदार प्रयास से ही पहली बार ओबीसी और ईडब्ल्यूएस का एक प्रमाणिक डाटा तैयार हुआ है नैतिकता भूल चूके भाजपाई बताएं कि 15 साल रमन-राज में पिछड़ा वर्ग आरक्षण की दिशा में क्या प्रयास हुए?
छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने कहा है कि नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल और छत्तीसगढ़ के भाजपा नेता अनर्गल बयानबाजी करने के बजाय यह बताएं कि 15 साल के रमन राज में अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण और आर्थिक रूप से पिछड़ों को आरक्षण देने के लिए क्या प्रयास हुए? आबादी के आधार पर स्थानीय नागरिकों को आरक्षण सुनिश्चित करना भूपेश सरकार का संकल्प है। वर्गवार प्रमाणित आंकड़े जुटाने में पूरी पारदर्शिता बरती जा रही है। जस्टिस छबिलाल पटेल की अध्यक्षता में गठित क्वांटिफिएबल डाटा आयोग ने धरातल पर उतर कर वास्तविक डाटा एकत्रित किया गया है, जिसका स्थानीय निकायों के सामान्य सभा में दावा/आपत्ति के बाद परीक्षण भी किया गया तथा आधार नंबर से भी सत्यापित किया गया है। पोर्टल और मोबाइल ऐप के माध्यम से भी आंकड़े जुटाए गए। भाजपा को आरोप लगाने का नैतिक अधिकार नहीं है क्योंकि 15 साल रमन सरकार के दौरान उक्त संदर्भ में कोई प्रयास ही नहीं किए गए। किसी भी व्यवस्था में संशोधन और बेहतर की गुंजाइश हमेशा होती है। विधानसभा के पटल पर रखे जानें और चर्चा के बाद अंतिम प्रकाशन का इंतज़ार करना चाहिए। जो भी रिर्पोट प्रस्तुत है उसे क्वांटिफिएबल डाटा आयोग द्वारा प्रमाणित/सत्यापित आंकड़ा माना जा सकता है। भूपेश बघेल सरकार के ईमानदार प्रयास से ही पहली बार एक प्रमाणिक डाटा तैयार हुआ है, केबिनेट में प्रस्ताव के बाद विधानसभा में विस्तृत चर्चा होगी और उसके बाद भी नियमित प्रक्रिया के तहत सतत संशोधन भी संभावित है।
प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने कहा है कि रमन सरकार के दौरान ही छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जाति वर्ग का आरक्षण 4 प्रतिशत काटा गया, 16 से घटाकर 12 प्रतिशत किया गया। 21 लाख फर्जी राशन कार्ड बना कर गरीबों के 36000 करोड़ के राशन खाने वाले यही भाजपा के लोग थे। भाजपा का मूल चरित्र ही आरक्षण विरोधी है। भाजपा तो मुखौटा है, आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने बिहार विधानसभा चुनाव से पहले ही सार्वजनिक रूप से कहा था कि अब वक्त आ गया है आरक्षण की समीक्षा कर उसे खत्म करने का। आदिवासी आरक्षण के संदर्भ में 2018 तक जानबूझकर षड़यंत्र रचे, उच्च न्यायालय में तथ्य और आधार ही प्रस्तुत नहीं किया गया। ननकीराम की अध्यक्षता में गठित कमेटी और सीएस की अध्यक्षता में गठित कमेटी के दस्तावेज का जिक्र ना शपथ पत्र में था ना अंतिम बयान और ना ही संशोधित बयान में दर्ज थे जो बिलासपुर उच्च न्यायालय में 2018 के पूर्व में दाखिल किए गए। 15 साल के रमन सरकार के दौरान 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया। अब आरक्षण पर घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं भाजपाई।