ग्रहण का पितृपक्ष पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि यह शुभ माना जाता है ; डॉ.शत्रुघ्न त्रिपाठी

ग्रहण का पितृपक्ष पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि यह शुभ माना जाता है ; डॉ.शत्रुघ्न त्रिपाठी

जशपुर 08 सितंबर 

बनारस के विद्वान ज्योतिषाचार्य एवं राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित डॉ. शत्रुघ्न त्रिपाठी का कहना है कि इस बार पितृपक्ष के प्रथम दिन और अंतिम दिन ग्रहण से  कोई भी नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा , बल्कि यह शुभ संयोग माना जाता है।

डॉ. शत्रुघ्न त्रिपाठी ने कहा कि 
इस बार पितृपक्ष की शुरुआत 7 सितंबर को भाद्रपद पूर्णिमा से हुई है, और इस दिन चंद्रग्रहण भी था। इसी तरह पितृपक्ष का समापन 21 सितंबर को सर्वपितृ अमावस्या के साथ होगा, जिस दिन सूर्यग्रहण भी है।यह एक दुर्लभ संयोग है, जो कई दशकों बाद बना है। 

    डॉक्टर त्रिपाठी का कहना है कि ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार, ग्रहण के दौरान किए गए श्राद्ध, तर्पण, और दान का फल कई गुना बढ़ जाता है, जिससे पितरों की आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
उन्होंने कहा कि पितृपक्ष का समापन 21 सितंबर को सर्वपितृ अमावस्या के साथ होगा, जिस दिन सूर्यग्रहण भी है, हालांकि यह भारत में दिखाई नहीं देगा।
इस दौरान, दक्षिण दिशा में मुख करके तर्पण, काले तिल, गंगाजल, और कुश के साथ पिंडदान करना चाहिए। पितृपक्ष के दौरान सात्विक भोजन करें, मांस-मदिरा से बचें, और ब्राह्मणों, गाय, कौवे, कुत्ते, और चींटियों के लिए भोजन निकालें।

    डॉ त्रिपाठी का कहना है कि सनातन परम्परा का निर्माण एक दिन में नहीं होता है । शब्दशः जो परम से परा के तरफ जाए वही परम्परा है ।
    सनातन धर्म में प्रकृति के साहचर्य एवं पर्यावरण के अनुरूप व्रतों , त्योहारों एवं उत्सवों को बताया गया है ।

चंद्रमा के पृष्ठ भाग पर पितरों की परिकल्पना हो या १६ दिनात्मक पितृपक्ष की व्यवस्था ये सिद्धांत ज्योतिष के अद्भुत रहस्यात्मक तथ्य हैं, ये आज भी विज्ञान के लिए चुनौती बने हुए हैं । संक्रान्तियों के विभाजन के अंत में अवशिष्ट भाग १६ दिन पितरों के निमित्त ग्रहण कर उसमें किए गए दान को अक्षय बताना इस बात का द्योतक है कि हमें सनातन परमरा में पितरों को उचित  व विशिष्ट स्थान देकर अर्चन करनी चाहिए । इसलिए कहा गया कि,, स्वाहा स्वधाकार विवर्जितानि , श्मशानतुल्यानि गृहणि तानि ,,
वह गृह श्मशान तुल्य है जहाँ पितरों एवं देवताओं का पूजन न हो । ये पितृपक्ष हमे  सभी उन श्रेष्ठ जनों के प्रति आदर एवं अर्चन के द्योतक हैं जो सनातन का रीढ़ है । हमारे पूर्वज के कृत्यों को स्मरण और उनके अनुगमन के मूल को ग्रहण कर आगे बढ़ने की कामना से पितरों को पिंडदान देना हमारी धार्मिक प्रविधि है । यह ऐसा कालखंड है जिसमें वर्षपर्यंत शुभकामना हेतु १६ दिन पितरों के अर्चन से आरंभ किया जाय । ठीक वैसे हीं जैसे हम शादी विवाह के पहले मातृकापूजन करते हैं ।