राम जी ने यहां बिताया था वनवास छत्तीसगढ़ के शिवरीनारायण में
मोना चन्द्राकर मोनालिसा रायपुर छत्तीसगढ़
शबरी श्री राम की परम भक्त थीं। जिन्होंने राम को अपने झूठे बेर खिलाए थे। शबरी का असली नाम श्रमणा था। वह भील समाज के शबर जाति से संबंध रखती थीं इसीलिए उनका नाम शबरी पड़ा।
शबरी के पिता भीलों के मुखिया थे। श्रमणा का विवाह एक भील कुमार से तय हुआ था, विवाह से पहले कई सौ पशु बलि के लिए लाए गए। जिन्हें देख श्रमणा बड़ी आहत हुई । ना जाने कितने बेजुबान और निर्दोष जानवरों की हत्या की जाएगी । इस कारण शबरी विवाह से एक दिन पूर्व भाग
कर दंडकारण्य वन में चली गई।
दंडकारण्य में मतंग ऋषि तपस्या किया करते थे, श्रमणा उनकी सेवा तो करना चाहती थी पर वह भील जाति की होने के कारण उसे अवसर ना मिलाने का शक था। फिर भी शबरी सुबह-सुबह ऋषियों के उठने से पहले उनके आश्रम से नदी तक का रास्ता साफ़ कर देती थीं, कांटे चुनकर रास्ते में साफ बालू बिछा देती थी। यह सब वे ऐसे करती थीं कि किसी को इसका पता नहीं चलता था।
एक दिन मतंग ऋषि को शबरी दिख गई और उनके सेवा से अति प्रसन्न हचए और उन्होंने शबरी को अपने आश्रम में शरण दी। जब मतंग का अंत समय आया तो उन्होंने शबरी से कहा कि वे अपने आश्रम में ही भगवान राम की प्रतीक्षा करें, वे उनसे मिलने जरूर आएंगे।उसके बाद शबरी का समय भगवान राम की प्रतीक्षा में बीतने लगा, वह अपना आश्रम एकदम साफ़ रखती थीं। रोज राम के लिए मीठे बेर तोड़कर लाती थी। बेर में कीड़े न हों और वह खट्टा न हो इसके लिए वह एक-एक बेर चखकर तोड़ती थी। ऐसा करते-करते कई साल बीत गए।
एक दिन शबरी को पता चला कि दो सुंदर युवक उन्हें ढूंढ रहे हैं, वे समझ गईं कि उनके प्रभु राम आ गए हैं.. .. उस समय तक वह वृद्ध हो चली थीं, लेकिन राम के आने की खबर सुनते ही उसमें चुस्ती आ गई और वह भागती हुई अपने राम के पास पहुंची और उन्हें घर लेकर आई और उनके पांव धोकर बैठाया।
अपने तोड़े हुए मीठे बेर राम को दिए राम ने बड़े प्रेम से वे बेर खाए और लक्ष्मण को भी खाने को कहा। लक्ष्मण को जूठे बेर खाने में संकोच हो रहा था, राम का मन रखने के लिए उन्होंने बेर उठा तो लिए लेकिन खाए नहीं। इसका परिणाम यह हुआ कि राम-रावण युद्ध में जब शक्ति बाण का प्रयोग किया गया तो वे मूर्छित हो गए थे, तब इन्हीं बेर की बनी हुई संजीवनी बूटी उनके काम आयी थी।
माता शबरी का वह आश्रम छत्तीसगढ़ के शिवरीनारायण में स्थित है। महानदी, जोंक और शिवनाथ नदी के तट पर स्थित यह मंदिर प्रकृति के खूबसूरत नजारों से घिरा हुआ है। इस आश्रम का उल्लेख महाकाव्य रामायण में मिलता है।
शबरी मंदिर भारत के छत्तीसगढ़ प्रांत में स्थित खरौद नगर के दक्षिण प्रवेश द्वार पर स्थित शौरिमंडप शबरी का ही मंदिर है। ईंट से बना पूर्व दिशा की ओर बना यह मंदिर को सौराइन दाई अथवा शबरी का मंदिर के नाम से जाना जाता है। मंदिर के गर्भगृह में श्रीराम और लक्ष्मण धनुष बाण लिये विराजमान हैं।
इस स्थान को पहले शबरीनारायण कहा जाता था जो बाद में शिवरीनारायण के रूप में प्रचलित हुआ। शिवरीनारायण छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले में आता है। यह बिलासपुर से 64 और रायपुर से 120 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दोनों ही शहरों से यहां सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
मंदिरों का शहर कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ के शिवरीनारायण में पंद्रह दिवसीय माघ पूर्णिमा मेला इसमें शामिल होने के लिए क्षेत्र सहित दूरदराज के लोग आते हैं। यह माघ पूर्णिमा से प्रारंभ होकर महाशिवरात्रि तक चलता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माघ पूर्णिमा के दिन ओडिसा के पुरी से भगवान जगन्नााथ चलकर शिवरीनारायण के मुख्य मंदिर में विराजते हैं।
राम जी ने यहां बिताया था वनवास । प्राचीन समय में छत्तीसगढ़ के कई हिस्से दंडकारण्य क्षेत्र में आते थे। रामायण में उल्लेख है कि भगवान राम ने अपने चौदह वर्ष के वनवास के लगभग दस साल दंडकारण्य में गुजारे थे, इस दौरान कई ऋषि-मुनियों से उन्होंने भेंट की थी।