27 सितंबर को रहेगा भारत बंद, जानिए क्या है फार्म लॉ, जिस पर सरकार और किसान आमने-सामने
केंद्र सरकार द्वारा पिछले साल लाए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसान 10 महीने से आंदोलन कर रहे हैं. अपने आंदोलन को और मजबूत करने के लिए किसानों ने 27 सितंबर को भारत बंद करने का एलान किया है. आपको बता दें कि 17 सितंबर 2020 को संसद में खेती से जुड़े तीनों कानून पास हो गए थे. ये वही कानून हैं, जिनके विरोध में पिछले साल नवंबर से शुरू हुआ किसानों का आंदोलन अब तक जारी है. आइए जानते हैं क्या हैं वो तीनों कानून जिस पर सरकार और किसानों के बीच एक तरह का संग्राम छिड़ा हुआ है.
1. कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020
इसके मुताबिक किसान मनचाही जगह पर अपनी फसल बेच सकते हैं. बिना किसी रुकावट दूसरे रोज्यों में फसल बेच और खरीद सकते हैं. इसका मतलब एपीएमसी (एग्रीकल्चर मार्केटिंग प्रोड्यूस मार्केटिंग कमेटी -Agriculture Marketing Produce Committee) के दायरे से बाहर भी फसलों की खरीद-बिक्री की जा सकती है. साथ ही फसल की बिक्री पर कोई टैक्स नहीं लगेगा. ऑनलाइन बिक्री की भी अनुमति होगी. इससे किसानों को अच्छे दाम मिलेंगे.
किसानों की आपत्ति-
किसानों का कहना है कि इच्छा के अनुरूप उत्पाद को बेचने के लिए आजाद नहीं हैं. भंडारण की व्यवस्था नहीं है, इसलिए वे कीमत अच्छी होने का इंतजार नहीं कर सकते. खरीद में देरी पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से काफी कम कीमत पर फसलों को बेचने के लिए मजबूर हो जाते हैं. कमीशन एजेंट किसानों को खेती व निजी जरूरतों के लिए रुपये उधार देते हैं. औसतन हर एजेंट के साथ 50-100 किसान जुड़े होते हैं. अक्सर एजेंट बहुत कम कीमत पर फसल खरीदकर उसका भंडारण कर लेते हैं और अगले सीजन में उसकी एमएसपी पर बिक्री करते हैं.
2. मूल्य आश्वासन व कृषि सेवा कानून 2020
देशभर में कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग को लेकर व्यवस्था बनाने का प्रस्ताव है. फसर खराब होने पर उसके नुकसान की भरपाई किसानों को नहीं बल्कि एग्रीमेंट करने वाले पक्ष या कंपनियों को करनी होगी. किसान कंपनियों को अपनी कीमत पर फसल बेचेंगे. इससे किसानों की आय बढ़ेगी और बिचौलिया राज ख्त्म होगा.
किसानों की ये हैं आपत्तियां-
किसानों का कहना है कि फसल की कीमत तय करने व विवाद की स्थिति का बड़ी कंपनियां लाभ उठाने का प्रयास करेंगी. बड़ी कंपनियां छोटे किसानों के साथ समझौता नहीं करेंगी.
3. आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून-2020
आवश्यक वस्तु अधिनियम को 1955 में बनाया गया था. अब खाद्य तेल, तिलहन, दाल, प्याज और आलू जैसे कृषि उत्पादों पर से स्टॉक लिमिट हटा दी गई है. बहुत जरूरी होने पर ही स्टॉक लिमिट लगाई जाएगी. ऐसी स्थितियों में राष्ट्रीय आपदा, सूखा जैसी अपरिहार्य स्थितियां शामिल हैं. प्रोसेसर या वैल्यू चेन पार्टिसिपेंट्स के लिए कोई स्टॉक लिमिट लागू नहीं होगी. उत्पादन, स्टोरेज और डिस्ट्रीब्यूशन पर सरकारी नियंत्रण खत्म होगा.
किसानों की आपत्तियां-
असामान्य स्थितियों के लिए कीमतें इतनी अधिक होंगी कि उत्पादों को हासिल करना आम आदमी के बूते में नहीं होगा. आवश्यक खाद्य वस्तुओं के भंडारण की छूट से कॉरपोरेट फसलों की कीमत को कम कर सकते हैं. मौजूदा अनुबंध कृषि का स्वरूप अलिखित है. फिलहाल निर्यात होने लायक आलू, गन्ना, कपास, चाय, कॉफी व फूलों के उत्पादन के लिए ही अनुबंध किया जाता है. कुछ राज्यों ने मौजूदा कृषि कानून के तहत अनुबंध कृषि के लिए नियम बनाए हैं.
देश में कुल 7000 मंडियां, जरूरत 42000 मंडियों की
सरकार का कहना है कि हम मंडियों में सुधार के लिए यह कानून लेकर आ रहे हैं. लेकिन, कानून में कहीं भी मंडियों की समस्याओं के सुधार का जिक्र तक नहीं है. यह तर्क और तथ्य बिल्कुल सही है कि मंडी में पांच आढ़ती मिलकर किसान की फसल तय करते थे. किसानों को परेशानी होती थी. लेकिन कानूनों में कहीं भी इस व्यवस्था को ठीक करने की बात नहीं कही गई है. किसान भी कह रहे हैं कि कमियां हैं तो ठीक कीजिए. मंडियों में किसान इंतजार इसलिए भी करता है, क्योंकि पर्याप्त संख्या में मंडियां नहीं हैं. आप नई मंडियां बनाएं. नियम के अनुसार, हर 5 किमी के रेडियस में एक मंडी. अभी वर्तमान में देश में कुल 7000 मंडियां हैं, लेकिन जरूरत 42000 मंडियों की है. आप इनका निर्माण करें. कम से कम हर किसान की पहुंच तक एक मंडी तो बना दें.
10 महीने 11 बार वार्ता
किसान आंदोलन को पूरे 10 महीने होने के दौरान 11 बार सरकार से वार्ता हो चुकी है, लेकिन सभी वार्ताएं विफल रही हैं. राकेश टिकैत हर बार यही कहते आए हैं कि वह बात करने को तैयार हैं, लेकिन सरकार बिना शर्तों के बात करे. मगर सरकार की तरफ से हर बार यही जवाब आया है कि कृषि कानून की वापसी की शर्त पर किसान बात ना करें. सरकार की तरफ से हर बार संशोधन की बात कही गई है. ऐसे में सवाल यही है कि 10 महीने का यह आंदोलन हो चुका है. समाधान कब निकलेगा.
'हिंसा या उपद्रव, भारत बंद का हिस्सा नहीं'
सोमवार को किसानों द्वारा भारत बंद की शुरुआत सुबह 6 बजे से होगी जो शाम 4 बजे तक चलेगा. संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) गाजीपुर, बॉर्डर के प्रवक्ता जगतार सिंह बाजवा ने बताया कि संयुक्त मोर्चा द्वारा 27 तारीख को घाेषित भारत बंद काे सफल बनाने के लिए तैयारियां चल रही हैं. देशभर के विभिन्न संगठनों से जिला स्तर व राज्य स्तर पर भी वार्ता कर सहयोग की अपील की गई है. भारत बंद शांतिपूर्वक होगा. हिंसा या उपद्रव, भारत बंद का हिस्सा नहीं होगा.
संयुक्त किसान मोर्चा के कार्यकर्ताओं के लिए निर्देश
- बंद से पहले मीडिया के जरिए पूरी सूचना दी जानी चाहिए, ताकि उस दिन पब्लिक को परेशानी ना हो. ट्रेड यूनियन और व्यापारी संगठन आदि को समय से सूचना दी जाए.
- बंद से पहले स्थानीय स्तर पर सभी जन आंदोलनों, जन संगठनों और गैर बीजेपी राजनीतिक दलों को बंद में जोड़ने की कोशिश की जानी चाहिए.
- बंद के दौरान लोगों को स्वेच्छा से सब कुछ बंद करने की अपील की जाए. किसी किस्म की जबरदस्ती नहीं की जाए. इस आंदोलन में किसी भी किस्म की हिंसा या तोड़फोड़ की कोई जगह नहीं है.
- बंद वाले दिन संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से बंद के समर्थन में कोई सभा आयोजित की जा सकती है. मोर्चे के मंच से कोई राजनैतिक नेता भाषण नहीं देगा. लेकिन बंद के समर्थन में अलग से मंच लगाकर कोई भी संगठन या पार्टी अपना आयोजन कर सकती है.
- याद रखिए यह बंद सरकार के खिलाफ है, पब्लिक के खिलाफ नहीं. इस बंद के दौरान पब्लिक को कम से कम तकलीफ हो, इसका ध्यान हमें रखना है.
विपक्षी दलों ने किया समर्थन का एलान
राजद के बाद अब कांग्रेस ने 'भारत बंद' को समर्थन देने की घोषणा की है. पार्टी ने प्रदर्शन कर रहे किसानों से वार्ता बहाल करने की मांग भी उठाई. कांग्रेस प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने शनिवार को कहा कि कांग्रेस पार्टी और उसके सभी कार्यकर्ता किसान संगठनों व किसानों द्वारा 27 सितंबर को बुलाए गए शांतिपूर्ण भारत बंद का समर्थन करेंगे. उन्होंने कहा, 'हम मांग करते हैं कि किसानों के साथ वार्ता प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए क्योंकि वे पिछले नौ महीने से अधिक समय से दिल्ली की सीमाओं पर बैठे हुए हैं. हम मांग करते हैं कि बिना चर्चा के लागू किए गए ये तीनों काले कानून वापस लिए जाने चाहिए.'
आंध्र प्रदेश सरकार संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में 27 सितंबर को बुलाए गए 'भारत बंद' को पूर्ण समर्थन देगी. यह घोषणा राज्य के सूचना एवं परिवहन मंत्री पर्नी वेंकटरमैया (नानी) ने शनिवार को की. इसके अलावा आंध्र सरकार ने विशाखापत्तनम इस्पात संयंत्र के कर्मचारियों का भी समर्थन करने की बात कही है. वाम दलों और तेलुगू देशम पार्टी ने पहले ही भारत बंद को अपना समर्थन देने की घोषणा की है.
-
सीपीआई ने तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों के पक्ष में देशव्यापी बंद में शामिल होने का फैसला किया है. सीपीआई महासचिव अतुल कुमार अंजान ने कहा, 15 राज्यों में पूर्ण बंदी होगी. तीन कृषि कानूनों, सभी कृषि उत्पाद के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की कानूनी गारंटी, बिजली बिल 2020 की वापसी एवं 4 लेबर कोड रद्द करने की मांग को लेकर किसान संगठनों द्वारा आगामी 27 सितंबर को देशव्यापी भारत बंद के निर्णय पर सारे देश में जोरदार तैयारियां चल रही हैं.
तमिलनाडु की सत्तारूढ़ द्रमुक 27 सितंबर को राज्य में 'भारत बंद' को सफल बनाने के लिए सभी जिलों में व्यापक अभियान चला रही है. पार्टी ने लोगों से इसे सफल बनाने की अपील की है, क्योंकि यह 'किसान समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए' है. डीएमके के राज्य आयोजन सचिव आर.एस. भारती ने कहा, 'पार्टी मुख्य रूप से कृषि प्रधान देश में कृषक समुदाय की वास्तविक जरूरतों के साथ खड़ी है. हम उन किसानों के साथ हैं जो कठोर कृषि कानूनों के खिलाफ अपने अधिकारों के लिए दिल्ली और अन्य जगहों पर लड़ रहे हैं.'
-
वहीं महाराष्ट्र में राष्ट्रीय राजनीतिक दलों, किसान संगठनों, ट्रेड यूनियनों, शिक्षकों, महिलाओं, युवाओं, मजदूरों और अन्य लोगों के लगभग 100 संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) समूह द्वारा बुलाए गए 27 सितंबर के 'भारत बंद' में शामिल होंगे. यह निर्णय एटक राष्ट्रीय कार्यसमिति सदस्य डॉ. भालचंद्र कांगो की अध्यक्षता में सभी समूहों की राज्य स्तरीय बैठक में लिया गया.
वहीं आम आदमी पार्टी के नेता राघव चड्डा ने शनिवार को कहा कि उनकी पार्टी 27 सितंबर को भारत बंद के आह्वान का पुरजोर समर्थन करती है. उन्होंने कहा कि आप के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हमेशा 'काले कानूनों' के खिलाफ किसानों के साथ खड़े रहे हैं. चड्डा ने ट्वीट किया, 'आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल हमेशा इन काले कानूनों के खिलाफ किसानों के साथ खड़े रहे हैं. आम आदमी पार्टी, संयुक्त किसान मोर्चा के 27 सितंबर के भारत बंद के आह्वान का पुरजोर समर्थन करती है.'
-
बैंक यूनियन ने भी दिया समर्थन
ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कन्फेडरेशन (AlBOC) ने सोमवार को बंद को अपना समर्थन दिया है. इसने सरकार से किसानों से उनकी मांगों पर बातचीत करने और गतिरोध के केंद्र में तीन कानूनों को रद्द करने का अनुरोध किया है. परिसंघ ने कहा कि उसके सहयोगी और राज्य इकाइयां सोमवार को पूरे देश में किसानों के साथ एकजुटता से शामिल होंगी. संघ ने इस महीने की शुरुआत में जारी एनएसएस भूमि और परिवारों के पशुधन और कृषि परिवारों की स्थिति आकलन, 2018-19 की रिपोर्ट का हवाला देते हुए 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की केंद्र की योजना पर सवाल उठाया था.
-
यूनियन ने कहा कि प्रति कृषि परिवार का औसत बकाया ऋण 2018 में बढ़कर 74,121 रुपये हो गया है, जो 2013 में 47,000 रुपये था. कृषि परिवारों की बढ़ती कर्ज गहरी कृषि संकट को दर्शाती है.
इन राज्यों में बंद का दिखेगा असर
भारत बंद का असर उन राज्यों में अधिक दिखाई दे सकता है जहां विपक्ष की सरकार है. पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के नेताओं के अलावा माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने भी खुलकर इस बंद में किसान संगठनों के साथ शामिल होने की घोषणा पहले ही कर दी है. बिहार में राजद के प्रमुख नेता तेजस्वी यादव ने बंद के दौरान तीनों कृषि कानून रद कराने के लिए सड़क पर उतरने की घोषणा की है. आंध्र प्रदेश में तेदेपा, दिल्ली में आम आदमी पार्टी, कर्नाटक में जेडीएस, तमिलनाडु में सत्ताधारी द्रमुक जैसे दलों ने भी बंद का समर्थन करने का एलान करते हुए केंद्र सरकार से कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग की है.