पश्चिम उड़ीसा तथा पूर्वी छत्तीसगढ़ के जनमानस का उत्कल सांस्कृतिक लोक त्यौहार नवान्न भक्षण के पारंपरिक पर्व "नुआखाई" की हार्दिक शुभकामनाएँ एवं बधाई है।
Gunanidhi Mishra
पश्चिम उड़ीसा तथा पूर्वी छत्तीसगढ़ के जनमानस का उत्कल सांस्कृतिक लोक त्यौहार नवान्न भक्षण के पारंपरिक पर्व "नुआखाई" की हार्दिक शुभकामनाएँ एवं बधाई है।
लोकजीवन का यह पर्व सादगी, सरलता, व्यवहारिक, शुद्धता, सुचिता, का महान सांस्कृतिक धरोहर है।
कोशल साम्राज्य के अधिपति भगवान राम की अपराजेय महान संस्कृति जिसमें खाद्यान्न के रूप में धान की सुगंधित फसल की बुवाई और कटाई के मध्य पहले इष्ट की पूजा नवान्न के भोग से करने की विरासत से अभिप्रेरित नुआखाई का त्यौहार, धान उत्पादन क्षेत्र, भगवान राम की राजधानी अयोध्या से लेकर दक्षिण के सुदूर इलाके तक फलफूलकर सुवासीत हुई है। सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ जिसे दक्षिण कोशल से जाना जाता है से लेकर पश्चिम ओडिशा के संबलपुर बरगढ सोनपुर बलांगीर कोरापुट तक विस्तृत रहा है इसी अंचल से भगवान जगन्नाथ जी का भोग छत्तीसगढ़ के देवभोग नामक स्थान से पुरी मंदिर में अभडा के रुप में जगत प्रसिद्ध है।
छत्तीसगढ़ और उड़ीसा की साम्य संस्कृति की पहचान कराती यह पर्व लोकसंस्कृति के क्षेत्र में अनूठा और अनुपम है।
आइए हम अपने संस्कृति की पहचान को अक्षुण्ण रखकर परंपरागत लोकजीवन मूल्य को बनाए रखें। जय जुहार, जय नुआखाई।