लाल श्याम शाह मोहला पाना बरस के जमींदार जिनसे रूबरू होने नेहरू को आना पड़ा था
सुदीप ठाकुर जो की की वरिष्ठ पत्रकार हैं इन्होंने लाल श्याम शाह जी के ऊपर किताब लिखी है साथ ही अपने किताब के बारे में कई प्रचलित संस्थाओं में इनके बारे में व्यख्यान किया ।उनके व्यख्यान से मुझे लाल श्याम शाह जी की जिंदगी में बेहद रोचक जानकारी प्राप्त हुई।
लाल श्याम शाह जो एक आदिवासी नेता थे इन्होंने अपना संपूर्ण जीवन आदिवासियों के लिए संघर्ष में व्यतीत कर दिया इन्होंने आजादी के आंदोलन में भी सक्रिय रूप से अपनी मौजूदगी दर्ज करी थी।
लाल श्याम शाह जी जिनका जन्म महाराष्ट्र के चांदा चंद्रपुर नाम के जगह में पैदा हुए थे।इन्होंने अपनी उच्च शिक्षा की पढ़ाई राजकुमार कॉलेज रायपुर से की थी।राजकुमार कॉलेज ऐसा कॉलेज था जिसमे राजा महाराजा और जमींदारों के ही संताने या उनके पारिवारिक लोग पढ़ा करते थे।
लाल श्याम शाह जी का जीवन बेहद ही शादा जीवन था वे कॉलेज से निकलने के बाद अपना जीवन आदिवासियों के लिए संघर्ष में लगा दिया । वे देश का पहला चुनाव निर्दलीय रूप से चौकी विधानसभा क्षेत्र से लड़े थे जबकि उनके पास उस वक्त के प्रचलित दलो के साथ लड़ सकते थे ।
वे चुनाव हार गए लेकिन उस चुनाव के परिणाम को चुनौती दे दी और उस चुनौती को जीतने के बाद नए तरीके से चुनाव होने से वे जीत गए वे कुछ दिन ही काम कर पाए लेकिन कुछ वजहों से उन्होंने इस्तीफा दे दिया उनके काल में चौकी क्षेत्र में 5 साल में 4 बार चुनाव फिर से करने पड़ गए थे।
एक वक्त ऐसा भी आ गया था जब जवाहर लाल नेहरू मध्यप्रदेश भ्रमण में रायपुर आए थे तब लाल श्याम शाह अपनी मांगो के लिए धारना कर रहे थे उनके द्वारा इस तरह समर्पित भाव से लोगो के हक के लिए लड़ते देख खुद नेहरू जी उनसे बात करने आए थे और यह बहुत बड़ी बात है वर्तमान परिस्थिति को मद्देनजर रखें तो।
लाल श्याम शाह एक ऐसे नेता थे जिन्होंने अपने समय पर आदिवासी लोगो के रहने के स्थान,जंगल ,जमीन और पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया वे जंगल कटाई के कट्टर विरोधी थे।इनके स्मृति और सम्मान में मोहला के नवीन और मानपुर के कॉलेज को उनका नाम दिया गया है।हमे इनके योगदान को कभी नहीं भूलना चाहिए।