सावन में शिव जी को बेल पत्र क्यों चढ़ाते हैं

मोना चंद्राकर मोनालिसा रायपुर छत्तीसगढ़

सावन में शिव जी को बेल पत्र क्यों चढ़ाते हैं

सावन में चारों ओर हरियाली ही नजर आती है । सावन में शिव जी की पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है । सावन मास शिव जी को अति प्रिय है क्यूंकि इस महीने ठंडक बहुत होती है और शिव जी को ठंडकता बहुत पसंद है । एक कथा के अनुसार पार्वती जी के माथे से पसीने की कुछ बूंदें मंदार पर्वत पर जा गिरी । पार्वती जी के उस पसीने की बूंद से ही बेल का वृक्ष उत्पन्न हुआ ।
              समुद्र मंथन में जब विष निकला था तब उसे शिव जी ने  पिया था विष का प्रभाव कम  करने के लिए देवताओं ने शिव जी को बेल पत्र  खिलाया  । तब से शिव जी को बेल पत्र बहुत प्रिय है । सावन में बेल पत्र बहुत मिलते हैं, इसीलिये सावन में ज्यादा बेल पत्र चढ़ाकर शिव जी की पूजा की जाती है । सावन में शिव जी को बेल पत्र अर्पित करने से अनन्य कृपा प्राप्त होती है । 
​तीन पत्ती वाले बेल पत्र को ही चढ़ाना चाहिए।
बेल पत्र कटा फटा नहीं होना चाहिए और ना ही उसमें छिद्र होना चाहिए।
​बेल पत्र को चिकनी सतह को नीचे करके अर्पित करना चाहिए
​​बेल पत्र चढ़ाते समय शिव जी को जल भी अर्पित करना ना हस से शिव जी प्रसन्न होते हैं  ​बेल-पत्र में तीन पत्तियां एक साथ जुड़ी होती है जिसे तीन पत्तों या त्रिपत्र को कहीं त्रिदेव सृजन, पालन और विनाश का प्रतीक माना जाता है और कहीं तीन गुणों सत्व, रज और तम का प्रतीक माना जाता है।
​तीन पत्तों को महादेव की तीन आंखों या उनके शस्त्र त्रिशूल का भी प्रतीक माना जाता है।
​​बेल के पेड़ की जड़ में गिरिजा, तने में महेश्वरी, शाखा में दक्षायनी, पत्ती में पार्वती और पुष्प में गौरी जी का वास होता है ।
​शिव लिंग पर  बेल पत्र चढ़ाने के लिए अनामिका मध्यमा और अंगूठे का प्रयोग करें।
​सोमवार को बेल पत्र नहीं तोड़ना चाहिए। शिव जी को बेल पत्र चढ़ाने के लिए एक दिन पहले ही तोड़ना चाहिए।

कविता 
सावन जब भी आता था सहेलियां संग मिल के सावन उत्सव मनाते थे...
सावन के पहले सोमवार को व्रत रख भोलेनाथ को मनाने मंदिर जाते थे...

किसी के बगीचे में सावन का झूला झूलने जाते थे...
चारों तरफ हरियाली देख हरी हरी चूड़ी पहन इतराते थे...

सावन की रिमझिम फुहारों के बीच मां के हाथों की गरम गुझिया और पकौड़े खाते थे...
सावन की दो तीन की झड़ी में घर में ही दुबक कर सो जाते थे...
अब ना वो सावन के झूले रहे, ना वो रिमझिम फुहारें रहीं...
ना वो हरियाली रही,