भागवत कथा में सुनाया बालक ध्रुव का चरित्र
ग्राम मंगसा स्थित महामाया मंदिर चौक में श्रीमद्भागवत कथा में कथावाचक बलौदाबाजार सैहा के भागवताचार्य पं. झालेंद्र कृष्ण महराज जी ने ध्रुव चरित्र सुनाया । इस मौके पर शिक्षक लोकेश कुमार वर्मा व टिकेश्वरी वर्मा ने बतौर मुख्य यजमान भागवत पूजन किया । कथावाचक ने बताया कि सतयुग के दौरान अवधपुरी में राजा उत्तानपद राज किया करते थे । उनकी बड़ी रानी का नाम सुनीति था और उनके कोई संतान नहीं थी । देवर्षि नारद रानी को बताते हैं कि यदि तुम दूसरी शादी करवाओगी तो संतान प्राप्त होगी । रानी अपनी छोटी बहन सुरुचि की शादी राजा से करवा देती है । कुछ समय बाद सुरुचि को एक संतान की उत्पत्ति होती है । जिसका नाम उत्तम रखा । उसके कुछ दिनों के बाद बड़ी रानी भी एक बालक ध्रुव को जन्म देती है । 5 वर्ष बाद जब राजा उत्तम का जन्म दिन मना रहे थे तो बालक ध्रुव भी बच्चों के साथ खेलता हुआ उनकी गोद में बैठ गया , जिस पर सुरुचि उठा देती है और उसे कहती है कि यदि अपने पिता की गोद में बैठना है तो अगले जन्म तक इंतजार कर । बालक ध्रुव यह बात चुभ जाती है और वह घनघोर वन में जाकर कठिन तपस्या करने लगते हैं । तपस्या के दौरान अबोध बालक ध्रुव का सामना खूंखार जंगली जानवरों से होता है | लेकिन वह अपने तपस्या से तस मस नही होता |
देवताओं के राजा इंद्र भी उसकी तपस्या को भंग करने का असफल प्रयास करते है | पर बालक ध्रुव प्रभु भक्ति में तल्लीन रहते है | बारिश, आंधी-तूफान के बावजूद तपस्या से न डिगने पर भगवान विष्णु प्रगट हुए और उन्हें अटल पदवी प्रदान की | इस प्रसंग से यह शिक्षा मिलती है कि किसी से भेदभाव नहीं करना चाहिए और प्रभु की भक्ति में कोई विघ्न नहीं डालना चाहिए । कथा के बीच-बीच में संगीत मंडली द्वारा सुनाए गए भजनों पर श्रद्धालु झूम उठें ।