क्यों टॉप में नहीं हैं छत्तीसगढ़ के उच्च शिक्षण संस्थान?
हाल ही में केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने 2021 के नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क जारी की है. जारी की गई रैकिंग ने छत्तीसगढ़ में उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता की पोल खोल दी है. नियम के मुताबिक संचालित होने वाले सभी उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए रैंकिंग करवाना अनिवार्य है. इसके बाद भी प्रदेश के ज्यादातर शैक्षणिक संस्थानों ने एनआईआरएफ रैंकिंग में भाग नहीं लिया. गिने-चुने संस्थानों को छोड़कर ही बाकी संस्थानों का रैंक अच्छा नहीं रहा है.
छत्तीसगढ़ में 9 शासकीय विश्वविद्यालय हैं. जबकि 14 निजी विश्वविद्यालय हैं. प्रदेश में 253 शासकीय महाविद्यालय, 245 अशासकीय महाविद्यालय और 12 अनुदान प्राप्त अशासकीय महाविद्यालय है. इसके बाद भी लगातार प्रदेश के शैक्षणिक स्तर में गिरावट आ रही है.
नेशनल इंस्टिट्यूट को मिली अच्छे रैंक
हाल ही में जारी की गई रैंकिंग में राजधानी के दो नेशनल इंस्टिट्यूट ने अपनी जगह बनाई है. राजधानी के प्रीमियम इंस्टिट्यूट में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (Indian Institute of Management) 15वीं रैंक हासिल की है. नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी रायपुर को 64 वी रैंक प्राप्त हुई है, दोनों ही इंस्टिट्यूशन ने अपनी रैंक में बढ़ोतरी की है, पूर्व में आईआईएम रायपुर की 19वीं थी. एनआईटी रायपुर की 67 की रेंज थी, दोनों ही नेशनल इंस्टिट्यूशन ने अपनी रैंक में सुधार किया है.
सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी नहीं रख पा रही रैंक बरकरार
वहीं कुलपति प्रोफेसर के एल्बम का कहना है कि कोरोना संक्रमण के चलते विश्वविद्यालय की गतिविधियां प्रभावित हुई है. इसके बाद भी यूनिवर्सिटी कैटेगरी में राज्य की एकमात्र शासकीय विश्वविद्यालय ने अपनी जगह बरकरार रखी है. उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में हमारी पूरी कोशिश रहेगी कि विश्वविद्यालय अच्छी रैंकिंग हासिल करें.
2016 में की गई थी एनआईआरएफ रैंकिंग
नेशनल इंस्टीट्यूशनल फ्रेमवर्क (National Institutional Ranking Framework) की पहली रैकिंग की शुरुआत 2016 में जारी की गई थी. पहले यह रैंकिंग 9 कैटेगरी में दी जाती थी. वहीं अब यह बढ़कर 11 कैटेगरी में हो गई है. इनमें यूनिवर्सिटी, इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट, फार्मेसी, कॉलेज, मेडिकल, लॉ, आर्किटेक्ट डेंटल और रिसर्च शामिल है
एनआईआरएफ रैंकिंग के लिए इस बार पीजी कॉलेज दुर्ग, एनसीजे कॉलेज बालोद, दिग्विजय कॉलेज राजनांदगांव, संस्कृत कॉलेज रायपुर, समेत छह कॉलेजों ने हिस्सा लिया था, लेकिन किसी भी महाविद्यालय को रैंकिंग में स्थान नहीं मिला. इसके अलावा प्रदेश के बड़े कॉलेजो में शुमार साइंस कॉलेज रायपुर, डिग्री गर्ल्स कॉलेज और छत्तीसगढ़ कॉलेज में रैंकिंग में भाग लेने के लिए दिलचस्पी नहीं दिखाई.
शिक्षाविद नागेंद्र दुबे का कहना है छत्तीसगढ़ राज्य को बने 20 साल हो गए हैं. लेकिन एजुकेशन सिस्टम में कोई मूलभूत सुधार के लिए सरकार के द्वारा कोई कदम नहीं उठाया गया है. बहुत सारे पाठ्यक्रम है, जो पिछले 40 साल से ही चले आ रहे हैं. जिनमें B.ed भी शामिल है. जिस तरह स्कूल शिक्षा दी जाएगी, उसका असर उच्च शिक्षा पर भी पड़ेगा. हमारे देश में सिर्फ परीक्षा पास करने के लिए पढ़ाया जाता है. बच्चों की नॉलेज और उनकी विस्डम को लेकर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है. इन सब चीजों के बारे में उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों को सोचने की जरूरत है.
शिक्षाविद ने आगे कहा कि छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय स्तर के सभी शैक्षणिक संस्थान मौजूद है लेकिन उन संस्थानों में छत्तीसगढ़ के लोगों को इसका ज्यादा लाभ नहीं मिला है. जिम्मेदार लोगों को कोशिश करनी चाहिए कि इस बारे में लोगों को जानकारी हो और ज्यादा से ज्यादा बच्चे के इन संस्थाओं में पड़े. इसके अलावा हाल ही में जो रैंकिंग जारी हुई है. जिसमें रविशंकर शुक्ल यूनिवर्सिटी हो या प्राइवेट यूनिवर्सिटी उनकी रैंकिंग गिरी है की, कहा कि रैंकिंग में तभी सुधार हो सकता है जब संस्थानों से पढ़कर निकलने वाले छात्र-छात्राएं अपना नाम रोशन करें. उसी तरह सरकार को उच्च शिक्षा से जुड़े स्टाफ, लेक्चरर, प्रोफेसर पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है कि इतनी सारी सुविधाएं होने के बाद भी आखिर रैंकिंग गिरने का क्या कारण है.
शिक्षाविद का कहना है कि जब इस दिशा में सामूहिक प्रयास किए जाएंगे, तभी आने वाले समय में रैकिंग में सुधार की हम सब उम्मीद कर सकते हैं.