बाइक पर कैंसर पीड़ित आदिवासी, वेंटिलेटर पर मानवता...

बाइक पर कैंसर पीड़ित आदिवासी, वेंटिलेटर पर मानवता...

कवर्धा  गरीबी और लाचारी का ऐसा दृश्य जिसने इंसानियत को झकझोर दिया — एक आदिवासी व्यक्ति अपनी कैंसर पीड़ित पत्नी को इलाज के लिए अस्पताल तक ले जाने के लिए लकड़ी की पटिया पर लिटाकर बाइक पर ले जा रहा है। कारण सिर्फ इतना कि उसके पास अब एंबुलेंस या वाहन किराए पर लेने के भी पैसे नहीं बचे और स्थानीय अस्पतालों ने बिगड़ते स्वास्थ्य को देखते हाथ खड़े कर दिए है। शोसल मीडिया में तैर रहे वीडियो ने लोगो को झकझोर कर रख दिया है । 

वनांचल क्षेत्र रेंगाखार तहसील के गांव नगवाही की आदिवासी महिला श्रीमती कपुरा मरकाम पिछले कई महीनों से कैंसर जैसी घातक बीमारी से जूझ रही है। कपुरा बाई के पति समलु सिंग मरकाम ने अपनी जमा-पूंजी पत्नी के इलाज में लगा दी है। ईलाज के आस में जो जहां कह रहा वहां पत्नी को पैसे खत्म होने पर बाइक पर पटिया बिछा लेटा कर ले जा रहा लेकिन अब स्थिति ऐसी हो गई है कि घर में खाने तक के लाले हैं।

पत्नी को बचाने की जद्दोजहद
पीड़ित परिवार को कुछ दिन पहले ही गृह मंत्री विजय शर्मा से इलाज हेतु मदद मांगी थी, जिस पर 10 हजार रुपये की आर्थिक मदद मिली एवं सरकारी अस्पताल में भर्ती भी कराया गया था जहां इलाज हुआ भी , लेकिन मरीज की बिगड़ती हालात व गिरते स्वास्थ्य को देख डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए। डॉक्टरों ने भले उम्मीद हारी हो किंतु कैंसर पीड़ित महिला के पति समलु ने उम्मीद नहीं छोड़ी और बाइक में लकड़ी की पटिया बांधकर उस पर पत्नी को सुलाकर अस्पतालो के चक्कर लगाते इलाज के लिए भटक रहा है । अब इलाज में लाखों रुपये की ज़रूरत है, को हजार दस हजार की मदद से पूरी नही होनी जरूरत है तो किसी स्थायी सरकारी सहायता व इलाज का इंतजार है।

ग्रामीणों का कहना है कि इस परिवार ने कई बार सरकारी दफ्तरों व नेताओ के चक्कर लगाए, पर अब तक कोई ठोस मदद या इलाज नहीं मिल पाई है । स्थानीय लोगों ने शासन-प्रशासन से अपील की है कि इस पीड़ित परिवार को तुरंत आर्थिक सहायता और चिकित्सकीय मदद उपलब्ध कराई जाए, ताकि महिला का समुचित इलाज हो सके।

अब बस सरकार से उम्मीद है…
पति का कहना है: “मेरी पत्नी को बचाना चाहता हूं, पर अब कुछ नहीं बचा। आर्थिक संकट के चलते गाड़ी किराए के लिए पैसे नही ऐसे में बाइक पर पत्नी को लेजाने मजबूर हु बस अब उम्मीद है कि सरकार या कोई मदद कर दे।”

यह दृश्य न केवल आदिवासी की गरीबी की दर्दनाक तस्वीर दिखाता है बल्कि यह भी सवाल उठाता है कि स्वास्थ्य विभाग में लाखो करोड़ो का घोटालेबाज नेताओ अफसरों की मौज के बीच क्या हमारे सिस्टम में ऐसी पीड़ितों तक मदद समय पर कभी पहुंच पाएगी ?