बाजीगर की चाल निराली
डाॅ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़
विश्वासों के
घट है रीते,
तृष्णा छलना
घट है छाए।
समर शेष हैं
काल निरंतर
आग लगी हैं
कौन बुझाए।।
दरके रिश्ते
टूटी आशा,
चाक चले पर
रचना कच्ची,
बोझ पीठ पर
काँधे बस्ता,
है बेकारी
माथा पच्ची,
जेठ तपन पथ
तपती काया
पाँव जला
कैसें बच पाए।।
खड़ी संस्कृति
साथ सभ्यता,
जीव जगत गति
कठपुतली मन,
पंथ विकट
विकराल मगर मुख,
राह सरे
लुटता नत यौवन
होड़ मची अब
कलपुर्जो की
बाढ़ प्रदूषण
कौन बचाए ।
सत्य खड़ा बन
गूँगा बहरा
बजता मिथ्या
का ही डंका,
राजनीति
शतरंजी चालें
रावण जला
जली कब लंका
बाजीगर की
चाल निराली
उसे खेल में
कौन हराए।