किसी व्यक्ति को बलात्कार के झूठे मामले में फंसाने से बचाए जाने की जरूरत है-सुप्रीम कोर्ट
अदालत का यह कर्तव्य है कि वह तथ्यों को समझने की कोशिश करे
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जहां बलात्कार पीड़िता के लिए सबसे बड़ी परेशानी और अपमान का कारण बनता है, तो वहीं एक झूठा आरोप, आरोपी के लिए भी इसी तरह की स्थिति का कारण बन सकता है और इससे उसे बचाया जाना चाहिए. जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस जेबी पारदीवाला की एक पीठ ने कहा कि जब कोई आरोपी इस आधार पर प्राथमिकी रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाता है तो ऐसी कार्यवाही स्पष्ट रूप से परेशान करने वाली है और ऐसी परिस्थितियों में अदालत का कर्तव्य बनता है कि वह प्राथमिकी को सावधानी से तथा थोड़ा और बारीकी से देखे.
पीठ ने कहा, ‘इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि बलात्कार से पीड़िता को सबसे ज्यादा परेशानी और अपमान होता है, लेकिन साथ ही बलात्कार का झूठा आरोप आरोपी को भी उतना ही कष्ट, अपमान और नुकसान पहुंचा सकता है. किसी व्यक्ति को बलात्कार के झूठे मामले में फंसाने से बचाए जाने की जरूरत है.’ न्यायालय ने कहा कि शिकायतकर्ता को यह सुनिश्चित करना होगा कि प्राथमिकी/शिकायत में दिए गए बयान ऐसे हों कि कथित अपराध का ठोस मामला बन सके.
शीर्ष अदालत ने कहा कि अदालत का यह कर्तव्य है कि वह मामले के रिकॉर्ड से सामने आने वाली जानकारी के अलावा अन्य परिस्थितियों पर गौर करे और यदि आवश्यक हो, तो उचित तरीके से पूरे मामले को देखे और सावधानी से तथ्यों को समझने की कोशिश करे. न्यायालय ने कहा, ‘सीआरपीसी की धारा 482 या संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपने अधिकारक्षेत्र का इस्तेमाल करते समय न्यायालय को केवल मामले के चरण तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि उसे मामले की शुरुआत/पंजीकरण के लिए समग्र परिस्थितियों के साथ-साथ जांच के दौरान एकत्र की गई सामग्री को ध्यान में रखना चाहिए.’