सुंदरी सवैया

डाॅ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़

सुंदरी सवैया

मन की अभिलाष कहे रचना,
तब आखर फूल झरे मन सारे।
करके रचना मन तार छिड़े, 
सब बोध समाज विचार उचारे।
गति जीवन शब्द अमोल लगें, 
कवि की कविता जन मान पुकारे। 
पढती मन पीर सदा शुभदा,
मन हारत जीतत खेल सँवारे ।


मन की गति चंचल घोटक-सी,
बस दौड़ लगाम बिना मत वाली।
जब मेल करे मति भाव भरे,
तब पूरित काम दिखे मुख लाली।
नित सींचत साधत बेल बढ़े, 
जग जीवन बिंदु सजे श्रम माली।
जब बाग खिले नित फूल झरें, 
मन मोहित देख भरी हरियाली ।